Olympics – हॉकी टीम की ये जीत है बड़ी

टोक्यो Olympics में भारतीय हॉकी टीम ने अपनी काबिलियत का लोहा मनवा दिया है। हॉकी मुकाबले में भारत की ऐतिहासिक जीत पर समूचा देश खुशी से झूम उठा है। हॉकी टीम को देश-विदेश से बधाई संदेश मिल रहे हैं। Olympics में 41 साल बाद भारत ने हॉकी में पदक जीता है। इसलिए यह जीत यादगार बन गई है। भारत ने बेहद रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से पराजित किया है।

हॉकी कप्तान Manpreet Singh, कोच ग्राहम रीड और सहायक कोच पीयूष दुबे के लिए यह सफलता किसी तोहफे से कम नहीं है। भारतीय खिलाड़ियों ने एक बार फिर समूचे विश्व में तिरंगे की शान को बढ़ाया है। इस जीत का श्रेय कोच ग्राहम रीड, कप्तान Manpreet Singh और सहायक कोच पीयूष दूबे के साथ-साथ पूरी टीम को जाता है। मुकाबले के दौरान खिलाड़ियों ने जिस सामंजस्य और मेहनत की बदौलत प्रतिद्वंदी जर्मनी को मात दी, वह काबिले तारीफ है। मैच को जीत में बदलने की खातिर प्रत्येक खिलाड़ी ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। जर्मनी ने बेशक पहला गोल कर भारत पर दबाव बना लिया था, मगर भारतीय खिलाड़ियों ने इस दबाव को ज्यादा देर तक खुद पर हावी नहीं रहने दिया।

हॉकी टीम की मेहनत का नतीजा आज दुनिया के सामने है। टोक्यो Olympics में भारत की जीत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी काफी प्रसन्न हैं। पीएम मोदी ने हॉकी टीम के कप्तान, कोच और सहायक कोच से फोन पर बात कर उन्हें जीत की शुभकामना देने में देरी नहीं की। इससे खिलाड़ियों का हौसला और बढ़ गया। इसके पहले टोक्यो Olympics में भारत की महिला हॉकी टीम को हार का सामना करना पड़ा था। इससे देशवासियों को कुछ निराशा हुई थी, मगर पुरूष हॉकी टीम ने निराश नहीं होने दिया है।

सोशल मीडिया पर भी हॉकी टीम को बधाई देने का सिलसिला जोरों पर चल रहा है। विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर खेलप्रेमी अपनी भावनाओं का इजहार कर रहे हैं। हॉकी टीम को ढेरों बधाई दी जा रही हैं। इस बीच हॉकी टीम पर इनामों की बारिश शुरू हो गई है। पंजाब सरकार ने हॉकी टीम में शामिल राज्य के प्रत्येक खिलाड़ी को एक-एक करोड़ का नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है। पंजाब के खेल मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी ने इस संबंध में घोषणा की है। हॉकी टीम में पंजाब के कुल 8 खिलाड़ी हैं। इनमें कप्तान मनप्रीत सिंह के अलावा हरमनप्रीत सिंह, रूपिंदर पाल सिंह, हार्दिक सिंह, शमशेर सिंह, दिलप्रीत सिंह, गुरजंत सिंह और मनदीप सिंह हैं।

कोरोना काल में टोक्यो Olympics बदले स्वरूप में हो रहे हैं। वहां मैच के दरम्यान दर्शकों के प्रवेश पर पाबंदी हैं। ऐसे में किसी भी मुकाबले में खिलाड़ियों का प्रोत्साहन बढ़ाने को दर्शक नहीं हैं। कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए यह निर्णय लिया गया है। कोरोना से निपटने को यह सही निर्णय है। भारत में हमेशा क्रिकेट को तरजीह मिलती रही है। क्रिकेट के प्रति नागरिकों का जुनून देखने लायक होता है। क्रिकेट की वजह से बाकी खेलों को प्रोत्साहन न मिलने का मुद्दा समय-समय पर उठता रहा है। क्रिकेट खिलाड़ियों की आमदनी भी अच्छी खासी होती है। जबकि हम यह भूल गए हैं कि किसी समय में हॉकी में भारत दुनियाभर में सिरमौर था।

हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को भला कौन भूल सकता है। ध्यानचंद ने अपने प्रदर्शन की बदौलत कई मौकों पर भारत का दुनियाभर में नाम रौशन किया था। ध्यानचंद के नाम पर देश के अलग-अलग हिस्सों में स्टेडियम भी बनाए गए हैं, मगर वक्त के साथ देश में हॉकी की दुदर्शा होती चली गई। केंद्र एवं राज्य सरकारों ने भी हॉकी को जैसे भूला दिया। हॉकी की उपेक्षा और संसाधनों की कमी के कारण अच्छी प्रतिभाओं को आगे आने का सुनहरा अवसर नहीं मिल पाता था। नतीजन Olympics में हॉकी स्पर्धा में भारत को पदक पाने के लिए इतना लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता। क्रिकेट को महत्व मिलना चाहिए, इसमें कोई दोराय नहीं है, मगर अन्य खेलों की उपेक्षा की जाए यह कतई ठीक नहीं है।

हॉकी के अलावा टेनिस, टेबल टेनिस, कुश्ती, शतरंज इत्यादि खेलों में भी देश के खिलाड़ियों ने अपनी उम्दा प्रतिभा का प्रदर्शन समय-समय पर किया है। इनमें महिला खिलाड़ी भी शामिल हैं। टोक्यो Olympics में भारतीय हॉकी टीम का यह प्रदर्शन आगे भी जारी रहे, इसकी उम्मीद करनी चाहिए। साथ इस बात का ध्यान रखना होगा कि खिलाड़ियों पर जीत सुनिश्चित करने के लिए उम्मीदों का अनावश्यक बोझ न डाला जाए। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं सोशल मीडिया के जरिए अक्सर ऐसा माहौल पैदा कर दिया जाता है, जिससे खिलाड़ियों को जबरदस्त मानसिक दबाव से गुजरना पड़ता है। इसका उनके खेल पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

देश के कुछ सफल खिलाड़ी इन हालात से गुजर चुके हैं। इनमें मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलर, सौरभ गांगुली और महेंद्र सिंस धोनी जैसे नाम प्रमुख हैं। इन खिलाड़ियों पर खेलप्रेमियों ने अपनी उम्मीदों का भार इस कदर लाद दिया था कि उन्हें मानसिक वेदना से गुजरना पड़ा था। अच्छे खिलाड़ी हमेशा खुद को साबित करने में कामयाब हो जाते हैं। भारत में चाहे खेल कोई भी हो, ज्यादातर सफल खिलाड़ियों को कामयाबी के शीर्ष तक पहुंचने से पहले कठिन संघर्ष करना पड़ा है। इन खिलाड़ियों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या आर्थिक और संसाधनों की कमी की रही है।

टोक्यो Olympics में कुछ दिन पहले महिला खिलाड़ी Mirabai Chanu ने पदक जीता था। Mirabai Chanu भले ही आज सफलता की बुलंदियां छू रही हैं, मगर एक समय उन्हें दो जून की रोटी के लिए भी अथक मेहनत करनी पड़ी थी। आस-पास कोई प्रशिक्षण केंद्र न होने के चलते उन्हें अपने घर से करीब 50 किलोमीटर दूर जाकर अभ्यास करना पड़ता था। केंद्र एवं राज्य सरकारों को उदीयमान खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने की दिशा में ठोस कार्ययोजना बनाकर काम करना चाहिए ताकि संसाधनों की कमी और आर्थिक तंगी की वजह से अच्छी खेल प्रतिभाएं मुरझा न सकें।