Afghanistan crisis – पाकिस्तान-तालिबान की जुगलबंदी

Afghanistan crisis आज दुनियाभर में चर्चाओं के केंद्र में है। अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के बढ़ते प्रभाव ने हालात को ज्यादा चिंताजनक बना दिया है। आम नागरिकों में डर, दहशत और निराशा निरंतर बढ़ रही है। अफगान सरकार और सुरक्षा बलों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भविष्य में परिस्थितियां सुधरेंगी अथवा और विकट होंगी, इसकी अभी कोई गारंटी नहीं है।

मुश्किलों में घिरे अफगानिस्तान को पाकिस्तान भी कम परेशान नहीं कर रहा है। पाकिस्तान ने अपना असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है। पर्दे के पीछे से वह खुलकर तालिबान का सपोर्ट कर रहा है। इसके चलते अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संबंधों में कड़वाहट आ रही है। ताजा विवाद बेहद पुरानी एवं ऐतिहासिक फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करने के बाद उभरा है। इस फोटो ने पाकिस्तान को देखकर पाकिस्तान को मिर्च लग गई है। वह बुरी तरह बौखला उठा है। दरअसल अफगानिस्तान के उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दरम्यान पाकिस्तानी सेना के भारतीय सेना के समक्ष सरेंडर करने की तस्वीर शेयर की है। इसके बाद दोनों देशों में जुबानी जंग तेज हो गई है। दोनों तरफ से सोशल मीडिया पर एक-दूसरे पर तीखे जुबानी हमले किए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर दोनों देशों में जारी जंग की शुरुआत कैसे हुई, यह जानना भी जरूरी है।

ईद-उल-अजहा (बकरीद) के दौरान अफगान President Ashraf Ghani ने काबुल में अपने सहयोगियों के साथ नमाज अता की थी। नमाज के समय रॉकेट से हमला किया गया था। हालांकि इस हमले में कोई हताहत नहीं हो सका था। नमाज स्थल से काफी दूर यह रॉकेट दागा गया था। रॉकेट हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस ने ली थी। हमले के बाद तेज धमाका होने पर नमाज पढ़ रहे अफगान के एक सीनियर लीडर घबरा गए थे। यह घटनाक्रम कैमरे में कैद हो गया था। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल होने पर पाकिस्तान के यूजर्स ने अफगान के खिलाफ टिप्पणी करनी शुरू कर दी थी। पाकिस्तान के ट्वीटर यूजर्स को जबाव देने के लिए अफगानिस्तान के उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तान सेना के सरेंडर की तस्वीर शेयर कर दी थी। इस तस्वीर को शेयर करने के साथ अमरुल्ला सालेह ने यह तक लिख दिया था कि अफगानिस्तान के इतिहास में आज तक ऐसी कोई तस्वीर नहीं है और भविष्य में भी ऐसी तस्वीर कभी देखने को नहीं मिलेगी।

अफगान के उप-राष्ट्रपति ने 1971 का यह घटनाक्रम याद दिलाकर पाकिस्तान के जख्मों पर नमक छिड़क दिया। नतीजन इस्लामाबाद का तिलमिलाना स्वभाविक है। 1971 में पाकिस्तान को भारत के हाथों शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। इस हार को वह आज तक भूल नहीं पाया है। बौखलाए पाक ने अब अफगानिस्तान को कोसने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। अफगानिस्तान के President Ashraf Ghani पाकिस्तान और तालिबान के खिलाफ लगातार सख्त बयान देते आ रहे हैं। उन्होंने भारत के साथ बेहतर संबंधों पर जोर दिया था। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी। गनी ने पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में 10 हजार आतंकी भेजने का भी आरोप लगाया था। इसके चलते दोनों देशों में तनाव बढ़ रहा है।

अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कारण अफगानिस्तान में हालात बदल रहे हैं। तालिबान के लड़ाकों ने बड़े भू-भाग पर अपना कब्जा कर लिया है। बेशक तालिबान के लड़ाके अभी काबूल से दूर हैं, मगर सरकार की चिंता कम नहीं हो रही है। Afghanistan crisis का शांति पूर्ण तरीके से समाधान होने की संभावना दिखाई नहीं दे रही है। ताकत के बल पर तालिबान काबूल पर कब्जा करने को छटपटा रहा है। अमेरिका के 95 प्रतिशत सैनिकों ने अफगान की धरती को छोड़ दिया है। इससे तालिबान के हौंसले बुलंद नजर आ रहे हैं।

पाकिस्तान और तालिबान के मधुर रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं। अमेरिका और तालिबान में वार्ता कराने में इस्लामाबाद ने अह्म भूमिका निभाई थी। अब वह तालिबान का राज स्थापित कराना चाहता है ताकि वहां से भारत को पूरी तरह बेदखल कराया जा सके। अफगानिस्तान में तालिबान का ताकतवर होना भारत के हित में नहीं है। पाकिस्तान एक तरफ अफगानिस्तान में शांति स्थापित कराने का ढोंग रच रहा है तो दूसरी ओर वह तालिबान को हरसंभव मदद देने से पीछे नहीं हट रहा। इस दोहरे चरित्र के कारण वह अफगानिस्तान को फूटी आंख नहीं भा रहा है।

Afghanistan crisis के मद्देनजर भारत ने अपनी कुटनीतिक तैयारियों को तेज कर दिया है। भविष्य में तालिबान से मिलने वाली संभावित चुनौतियों से निपटने को रणनीति बनाई जा रही है। भारत को डर है कि जम्मू-कश्मीर में माहौल बिगाड़ने के लिए पाकिस्तान तालिबान का इस्तेमाल कर सकता है। जम्मू-कश्मीर में पहले से विभिन्न आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इन संगठनों से निपटने में सुरक्षा बलों को काफी ऊर्जा खर्च करनी पड़ रही है। इस बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी भारत के दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरान वह अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से मुलाकात करेंगे।

भारत और अफगान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की यह मुलाकात बेहद अह्म समय में हो रही है। इस मुलाकात से पाकिस्तान और तालिबान की बेचैनी बढ़ना तय है। वैसे अफगानिस्तान के President Ashraf Ghani ने तालिबान की चुनौती से निपटने के लिए भारत से सैन्य मदद की पेशकश की बात को सिरे से खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति गनी का कहना है कि अब समय आ चुका है, जब अफगानिस्तान की सुरक्षा के लिए हमें खुद संघर्ष करना होगा। तालिबान के सामने घुटने टेकने की संभावना से वह साफ इंकार कर चुके हैं। इन विषय परिस्थितियों से काबुल खुद को कैसे बाहर निकाल पाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।