गलत सूचना वायरस से अधिक संक्रामक : जाफरीन चौधरी

 

संतोष कुमार सिंह

देहरादूनः कोरोना का लहर कमजोर हुआ है लेकिन खतरा टला नहीं है। ऐसे में लोग यह बात भी नहीं भूले कि कैसे किसी भी आपदा की स्थिति में चाहे कोरोना की महामारी हो या पल्स पोलियो का अभियान समाज का एक हिस्सा हमेशा ही नकारात्मक खबरों की जद में होता है। हालाकि नकारात्मकता पर सकारात्मकता हमेशा हावी रही है। जैसा की हमने कोरोना के दौरान भी देखा कि कैसे फैलती हुई महामारी और टीकाकरण का विरोध दोनों साथ-साथ चल रहे थे। सकारात्मक खबरें छप रही थीं लेकिन नकारात्मक खबरें फैल ज्यादा रही थी और साथ ही मुश्किल होती जा रही थी कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई। लेकिन समय के साथ लोगों को समझ आया कि दो गज दूरी, मास्क है जरूरी और टीकाकरण ही बचाव है।
स्वाभाविक तौर इस तरह के माहौल में मुख्यधारा की मीडिया की भूमिका अहम होती है बावजूद इसके दावा यह रहा है कि सोशल मीडिया का युग है लेकिन सोशल मीडिया बेलगाम है ऐसा सबलोग मानते हैं।

कुछ इसी तरह की पृष्टभूमि में यूनिसेफ जैसी संस्था ने मीडिया कर्मियों विशेष रूप से उन पेशेवर मीडिया कर्मियों के लिए जो स्वास्थ्य पत्रकारिता से जुड़े हैं उनको प्रशिक्षित करने के लिए ट्रेनिग मॉडयूल डेवलप किया है जिसे नाम दिया गया है क्रिटिकल अप्रेजल स्किल। इसी पृष्ठभूमि देश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यशाला का आयोजन किया जाता रहा है। ठीक वैसी ही एक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन देहरादून में किया गया। जिसमें 150 से अधिक पेशेवर मीडिया कर्मियों, मीडिया के छात्रों ने बाल स्वास्थ्य पर प्रभावी रिपोर्टिंग के लिए जरूरी जांच परख मूल्यांकन कौशल से जुड़े पत्रकारिता के गुर सीखे।

यूनिसेफ द्वारा 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक चलने वाले मीडिया कर्मियों के लिए जरूरी जांच परख से जुड़े इस महत्वपूर्ण कार्यशाला में भागीदारी करने वाले पेशवरों पत्रकारों में अमर उजाला, द ट्रिब्यून, टाइम्स ग्रुप के पत्रकारों के साथ ही निजी रेडियों चैनलों के रेडियो जॉकी के साथ ही मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों यूनिसेफ के क्रिटिकल अप्रेजल स्किलस यानी सीएस के इस पाठ्यक्रम के माध्यम से स्वास्थ्य पत्रकारिता में साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग और तथ्य जांच के महत्व को सीखा।

क्या कहती है यूनिसेफ संचार प्रमुख
कार्यशाला में ऑनलाईन शिरकत करते हुए यूनिसेफ इंडिया की संचार एडवोकेसी एवं भागीदारी प्रमुख ज़ाफरीन चौधरी ने कहा,” गलत सूचना शायद वायरस से अधिक संक्रामक है। यह तेजी से फैलता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक आसन्न खतरा बन गया है उन्होंने कहा, सीएएस किसी भी गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए एक समग्र 360.डिग्री विज्ञान-आधारित संचार दृष्टिकोण बनाने और मीडियाकर्मियों की क्षमता-निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है। ज़ाफरीन चौधरी ने कहा, “एक प्रभावी दो-तरफा संचार सुनिश्चित करने में मीडिया की एक अहम भूमिका है, ताकि टीकाकरण और समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन की जमीनी हकीकत को नीति निर्माताओं तक पहुंचायी जा सके।”

टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. एन. के. अरोड़ा ने पत्रकारों के साथ कोविड-19 टीकाकरण पर बातचीत की और मीडिया से सूचना रफ्तार को कम नहीं पड़ने देने और नए तरीके खोजने का आग्रह किया, जिससे योग्य लोगों को समय पर टीके की खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

वरिष्ट संपादकों की राय

गो न्यूज के संस्थापक पंकज पचौरी, जो सीएएस समिति के प्रमुख संस्थापक सदस्य रहे हैं, ने कहा कि महामारी के दौरान काल्पनिकता से परे और तथ्य की ओर ले जाने में सीएएस अत्यधिक कारगर साबित हुआ है। उन्होंने सुझाव दिया कि पत्रकारिता और जनसंचार के पाठ्यक्रम में सीएएस को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए और इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष इस पहल को पेश किया जाना चाहिए।

उन्होंने सिफारिश की कि वरिष्ठ संपादकों और मीडिया मालिकों को भी सीएएस पाठ्यक्रम को अपनाना चाहिए, जिसे पेशेवर निकायों जैसे कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और विभिन्न प्रेस क्लबों के माध्यम इस पहल को आगे बढ़ाया जा सके।

 

 

मीडिया संस्थानों की अहम भूमिका

अमर उजाला, देहरादून के कार्यकारी संपादक संजय अभियान ने कहा कि अमर उजाला उन कुछ समाचार पत्रों में से एक था जिसने अपने संस्थानों में सीएएस को जल्दी लागू किया। “महामारी अपने साथ गलत सूचना और दुष्प्रचार की सुनामी लेकर आई, जिसे हम एक इन्फोडेमिक कहते हैं। सीएएस के माध्यम से हम इस इन्फोडेमिक में से कुछ को प्रबंधित करने में सक्षम हुए। हमें उम्मीद है कि आगे चलकर हम न केवल अपने स्वास्थ्य पत्रकारों को बल्कि अपने प्रबंधन और अन्य बीट के पत्रकारों को भी सीएएस के माध्यम से प्रशिक्षित करने में सक्षम होंगे।

अभिज्ञान ने अमर उजाला की महामारी के दौरान कवर की गई खबरों के उदाहरण भी दिए और बताया कि कैसे सीएएस ने पत्रकारों की मदद की।

 

2014 में यूनिसेफ द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, थॉमसन रॉयटर्स और आईआईएमसी के सहयोगी स्वास्थ्य पत्रकारों और पत्रकारिता एवं जन संचार के छात्रों के लिए सीएएस कार्यक्रम विकसित किया था, बाद में आईआईएमसी और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी ने अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया। पत्रकारिता और जनसंचार विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला ने भी इस साल अपने तीसरे सेमेस्टर के छात्रों के पाठ्यक्रम में सीएएस को जोड़ा है।

कार्यशाला में सीएएस से जुड़े पेशेवर, पत्रकारिता के छात्र और विषय विशेषज्ञ, संजय अभिज्ञान, पूर्व कार्यकारी संपादक, अमर उजाला (देहरादून) और सीएएस मेंटर; पंकज पचौरी, मीडिया एडिटर, जीओ न्यूज और सीएएस मेंटर; डॉ एन के अरोड़ा, अध्यक्ष, टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप; प्रो (डॉ) राजीव दासगुप्ता, सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; सोमा शेखर मुलुगु, पूर्व एसोसिएट एडिटर, द हिंदू बिजनेस लाइन; मुरली कृष्णन चिन्नादुरई, इंटरन्यूज हेल्थ जर्नलिज्म नेटवर्क; यूनिसेफ के टीकाकरण, स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ, प्रमुख समाचार पत्रों और निजी एफएम के वरिष्ठ पत्रकार और आरजे ने नियमित टीकाकरण, कोविड-19 टीकाकरण, एंटीबायोटिक्स, बच्चों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा की।