विधि विशेषज्ञों पर हाईकोर्ट गरम, सरकार के साथ-साथ सभी नगर निगम और विकास प्राधिकरण की पैरवी किए जाने पर उठाए सवाल

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उप्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधि विशेषज्ञों की भारी-भरकम टीम नियुक्त है। इसमें अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी), मुख्य स्थायी अधिवक्ता (सीएससी) एवं अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिक्ता (एसीएससी) शामिल हैं। हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर प्रकाश डालकर सवाल पूछा है कि आखिरकार एएजी, सीएससी और एसीसीसी सरकार के साथ-साथ नगर निगम और विकास प्राधिकरण का भी प्रतिनिधित्व क्यूं कर रहे हैं। दोनों पक्ष से इस एवज में फीस भी वसूल रहे हैं।

लखनऊ। उच्च न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त विधि विशेषज्ञों की कार्यशैली पर सवाल उठाए गए हैं। किसी और ने नहीं बल्कि खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विधि विशेषज्ञों को कटघरे में खड़ा किया है। दरअसल यह विशेषज्ञ सरकार के साथ-साथ सभी विकास प्राधिकरण और नगर निगमों का भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसकी एवज में दोनों से अलग-अलग फीस वसूली जा रही है। हाईकोर्ट ने इस परिपाटी पर गहरी नाराजगी जाहिर कर इसे करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग होना तक बता दिया है। माननीय न्यायालय ने उप्र के मुख्य सचिव को इस संबंध में नीति तैयार कर 2 माह के भीतर अवगत कराने का आदेश दिया है।

हाईकोर्ट के इस निर्णय से यूपी सरकार के साथ-साथ नगर निगम और विकास प्राधिकरण भी सकते में आ गए हैं। दरअसल इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उप्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधि विशेषज्ञों की भारी-भरकम टीम नियुक्त है। इसमें अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी), मुख्य स्थायी अधिवक्ता (सीएससी) एवं अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिक्ता (एसीएससी) शामिल हैं। हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर प्रकाश डालकर सवाल पूछा है कि आखिरकार एएजी, सीएससी और एसीसीसी सरकार के साथ-साथ नगर निगम और विकास प्राधिकरण का भी प्रतिनिधित्व क्यूं कर रहे हैं। दोनों पक्ष से इस एवज में फीस भी वसूल रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि एक मामले में 2 पक्षों से 2 बिल वसूलना कदाचार है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि वर्तमान मामले में यदि 2 बिल एक अधिवक्ता द्वारा, एक राज्य की तरफ से और दूसरा विकास प्राधिकरण से प्रस्तुत किया जाता है, तो यह उसके कदाचार को दर्शाता है। एक अधिवक्ता 2 बिल कैसे उठा सकता है। एक राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में और दूसरा विकास प्राधिकरण यानी गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) से। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर किसी प्रकरण में राज्य और राज्य के विकास प्राधिकरण अथवा नगर निगम के किसी अतिरिक्त महाधिवक्ता या मुख्य स्थायी वकील द्वारा ऐसा कोई बिल उठाया गया है, तो उक्त राशि उससे वसूली जानी चाहिए, क्योंकि यह टैक्सपेयर्स का पैसा है।

इस पैसे का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने भूमि अधिग्रहण प्रकरण में एक अवमानना याचिका को खारिज कर ये टिप्पणियां कीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में 6 अतिरिक्त महाधिवक्ता और इस न्यायालय की लखनऊ पीठ में 6 अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं। इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 8 मुख्य स्थायी अधिवक्ता और लखनऊ बेंच में 10 मुख्य स्थायी अधिवक्ता, अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता, स्थायी अधिवक्ता और संक्षिप्त धारकों की संख्या के अलावा हैं।

एक मामले में 2 पक्षों से 2 बिल वसूलने के इस मामले में हाईकोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव को नीति बनाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि मुख्य सचिव मंत्रिमंडल को बताएंगे कि क्या राज्य के प्रतिनिधित्व के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट और इसकी लखनऊ पीठ में इतने अतिरिक्त महाधिवक्ता और मुख्य स्थायी अधिवक्ता की जरूरत है। जब पहले से राज्य के 400 से ज्यादा अधिवक्ता सूचीबद्ध हैं। तदुपरांत प्रदेश के सर्वोत्तम हित में मंत्रिमंडल आवश्यकतानुसार निर्णय ले सकता है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को इस प्रकरण में प्रगति की सूचना न्यायालय के महापंजीयक को 2 माह के भीतर देने का आदेश भी दिया है।