पूर्वांंचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण एवं विघटन के प्रस्ताव के विरोध में हुआ प्रांतव्यापी विरोध सभा

– विद्युत निगम के कर्मचारियों ने उपभोक्ता विरोधी एवं कर्मचारी विरोधी निजीकरण का फैसला वापस लेने की मांग पर अड़े
–  छठे दिन भी राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के सभी जनपदों व् परियोजना मुख्यालय पर कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन जारी

उदय भूमि ब्यूरो
लखनऊ/गाजियाबाद। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश के आह्वान पर पूवाज़्ंचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण एवं विघटन के विरोध में आज छठे दिन भी राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के सभी जनपदों एवं परियोजना मुख्यालय पर प्रदेश के तमाम बिजली कर्मचारियों, संविदा कर्मियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं ने विरोध सभा की। गाजियाबाद में कर्मचारियों एवं इंजीनियरों ने आरडीसी स्थित मुख्य अभियंता कार्यालय पर धरना दिया। सरकार के पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव के विरोध में पूर्वांचल के सभी जनपदों में विगत 1 सितम्बर से विरोध सभाओं का क्रम चल रहा है जो दिनांक 18 सितम्बर से प्रदेश भर में शुरू हो गया। संघर्ष समिति ने सरकार से व्यापक जनहित में निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त करने की मांग की है ।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों अवधेश कुमार, अनिल चौरसिया, हिर्देश गोस्वामी, आलोक त्रिपाठी, उमाकांत शर्मा, भुवनेश, केके सोलंकी, रामनारायण, योगेंद्र लाखा, दिलनवाज, पंकज भारद्वाज, धीरज सिंह, जय भगवान, राज सिंह, सुनील कुमार, शेर सिंह त्यागी, दिलीप सक्सेना, अवनीश गुप्ता, राम यश, सुरेंद्र प्रताप ने चेतावनी दी है कि यदि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के विघटन व निजीकरण का फैसला वापस न लिया गया और इस दिशा में सरकार की ओर से कोई भी कदम उठाया गया तो ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर व अभियंता उसी समय बिना और कोई नोटिस दिए अनिश्चित कालीन आंदोलन प्रारंभ करने हेतु बाध्य होंगे, जिसमें पूर्ण हड़ताल भी सम्मिलित है। इसकी पूर्णतया जिम्मेदारी प्रबंधन की होगी। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वह प्रभावी हस्तक्षेप करें। जिससे निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त हो सके और उनके कुशल नेतृत्व में बिजली कर्मी पूर्ववत पूर्ण निष्ठा से बिजली आपूर्ति और सुधार के कार्य में जुटे रह सकें। संघर्ष समिति ने यह भी कहा है कि निजीकरण का निर्णय संघर्ष समिति और ऊर्जा मंत्री की उपस्थिति में विगत 5 अप्रैल को हुए समझौते का खुला उल्लंघन है। जिसमें लिखा गया है कि बिजली कर्मचारियों को विश्वास में लिए बगैर प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र का कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। विघटन और निजीकरण दोनों की ही विफलता पर सवाल खड़ा करते हुए संघर्ष समिति का कहना है कि जब उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद का विघटन किया गया था तब सालाना घाटा मात्र 77 करोड़ रु था। विघटन के बाद कुप्रबंधन और सरकार की गलत नीतियों के चलते यह घाटा अब बढ़कर 95000 करोड़ रु से अधिक हो गया है। इसी प्रकार ग्रेटर नोएडा में निजीकरण और आगरा में फ्रेंचाइजीकरण के प्रयोग भी पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इन्हीं विफल प्रयोगों को एक बार फिर पूर्वाचल विद्युत वितरण निगम पर क्यों थोपा जा रहा है। संघर्ष समिति ने निणज़्य लिया है कि निजीकरण के विरोध में अनिश्चितकालीन आंदोलन चलाया जाएग। केंद्रीय पदाधिकारी 21 सितम्बर से 20 अक्टूबर तक पूरे प्रदेश में मंडल मुख्यालयों पर विरोध सभाएं कर कर्मचारियों और उपभोक्ताओं को जागरूक करेंगे। इसके साथ ही प्रदेश भर में जन प्रतिनिधियों को निजीकरण के विरोध में ज्ञापन दिए जाएंगे।