यूनिसेफ ने किया दो दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला में बोले विशेषज्ञ…करना है खसरे से मुकाबला तो बढ़ाना होगा टीकाकरण

देश भर से आये मीडिया जगत से जुड़े पेशेवरों ने खसरा और रूबेला के बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर की और आम जनमानस में टीके से जुड़ी झिझक और भ्रामक सूचनाओं का मुकाबला करने संबंधी तौर तरीकों पर किया विमर्श।

मुंबई: चाहे कोई भी अभियान हो विशेष रूप से स्वास्थ्य संबंधी अभि​यान मीडिया की भूमिका हमेशा ही अहम रही है। चाहे पल्स पोलियो अभियान हो, या नियमित टीकाकरण अभियान या फिर कोरोना के दौरान लोगों को सजग करने में मीडिया की भूमिका, हमेशा ही मीडिया ने अपने दायित्व बोध का निर्वहण किया है। कोरोना के दौरान नियमित टीकाकरण अभियान में आई शिथिलता के कारण नियमित टीकाकरण अभियान के दौरान बच्चों का टीकाकरण थोड़ा बाधित हुआ। इसके परिणाम स्वरूप खसरा और रूबेला के मामले देश के अलग—अलग हिस्सों में बढ़े हैं। इसी आसन्न चुनौती पर विचार करने नियमित टीकाकरण और खसरा और रूबेला टीकाकरण पर जागरूकता पैदा करने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने के लिए पूरे भारत के 60 से अधिक मीडिया पेशेवरों ने दो दिवसीय कार्यशाला में भाग लिया।

 


इस कार्यशाला का आयोजन यूनिसेफ के साथ साझेदारी में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा किया गया, जिसका विषय है ‘खसरा, रूबेला और नियमित टीकाकरण पर मीडिया कार्यशाला।’ मुंबई सहित देश का बड़ा हिस्सा खसरे की समस्या से जूझ रहा है। मीडिया में छपी रिपोर्ट और सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो मुंबई में करीब 20,000 बच्चों को खसरे का टीका नहीं दिया जा सका। महाराष्ट्र के अलावा बिहार, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और केरल में भी खसरे के मामले बढ़ रहे है। ऐसे में मीडिया ​कर्मियों के साथ देश की वित्तिय राजधानी मुंबई में यूनिसेफ और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय निश्चित रूप से भविष्य की चुनौतियों से निपटने का रास्ता तलाशने में कामयाब होंगी ऐसी उम्मीद की जा सकती है। ऐसे सभी भौगोलिक क्षेत्रों में, प्रभावित बच्चे कोविड-19 महामारी के दौरान विभिन्न कारणों से अपने नियमित टीकाकरण से चूक गए

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अतिरिक्त आयुक्त (टीकाकरण) डॉ. वीणा धवन ने कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों को खसरे के लक्षण, जानलेवा बीमारी की रोकथाम और इसके इलाज से संबंधित विभिन्न पहलुओं से अवगत करवाया। इतना ही नहीं डॉ धवन ने अपने संबोधन में समुदायों और स्थानीय स्तर पर इस बीमारी से प्रभावित लोगों के टीकाकरण और इससे जुड़े झिझक को दूर करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि खसरे के बारे में गलत सूचना और सांस्कृतिक मिथकों का मुकाबला करने के हमें हर स्तर पर तैयारी करनी होगी।

डॉ धवन ने कहा कि “खसरा सबसे संक्रामक मानव विषाणुओं में से एक है, लेकिन यह तथ्य भी उतना ही परखा हुआ है कि हम इस बीमारी से टीकाकरण के माध्यम से लगभग निजात पा सकते हैं। इस बाबत राज्यों ने नियमित टीकाकरण कवरेज की रफ्तार में कमी के मद्देनजर कैच-अप अभियान शुरू किए हैं, जिससे अधिक से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जा सके। डॉ धवन ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में देशव्यापी स्तर पर की जा रही पहल में मीडिया की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि मीडिया हमेशा देश की स्वास्थ्य पहलों में एक मजबूत भागीदार रहा है। ”उन्होंने आगे कहा कि “खसरे के उन्मूलन के समर्थन में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। हमें समुदायों को शिक्षित करने और उन्हें अपने बच्चों को खसरे के साथ-साथ सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत कवर किए गए सभी टीकों के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।”पीआईबी पश्चिमी क्षेत्र की अतिरिक्त महानिदेशक स्मिता वत्स शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि मीडिया प्रामाणिक जानकारी के लिए और गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए पीआईबी वेबसाइट और ब्यूरो के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, विशेष रूप से पीआईबी फैक्ट-चेक तक पहुंच सकता है।
उन्होंने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि कोविड-19 के कारण वैक्सीन कवरेज में कमी, कमजोर खसरे की निगरानी, ​​और निरंतर रुकावट और नियमित टीकाकरण संबंधी गतिविधियों में देरी सिर्फ भारत का फेनोमिना नहीं है बल्कि विश्व स्तर पर खसरे के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।


इससे जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो यह सिर्फ भारत की समस्या नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में खसरे के मामलों में बढ़ोतरी की समस्या मुंह बाए खड़ी है। एक नई रिपोर्ट ने दावा किया गया है कि 2021 में पूरी दुनिया में करीब चार करोड़ बच्चों को खसरे के खिलाफ दिए जाने वाले टीके की खुराक नहीं मिली। डॉ आशीष चौहान यूनिसेफ इंडिया स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ आशीष चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि, “खसरा प्रतिरक्षण प्रणाली की ताकत का एक ‘अनुरेखक’ है। जब टीकाकरण कवरेज कम होता है, तो खसरे का खतरा बढ़ जाता है लेकिन यह भी उतना ही सही है कि इसे टीकाकरण में तेजी के जरिए रोका जा सकता है।”डॉ. चौहान ने कहा कि “सामाजिक लामबंदी के माध्यम से टीकाकरण की गति बढ़ाने और टीके से जुड़ी झिझक को दूर करने की योजना बनाने की तत्काल आवश्यकता है”इस कार्यशाला में शिरकत कर रहे मीडिया​ कर्मियों को संबोधित करते हुए, यूनिसेफ इंडिया संचार विशेषज्ञ अलका गुप्ता ने कहा, “ प्रशिक्षित मीडिया
कर्मियों के रूप में, आपके पास टीकाकरण पर तथ्य-आधारित संदेशों के साथ अपने दर्शकों के बीच जागरूकता पैदा करने की शक्ति है जो इससे जुड़े दृष्टिकोण को आकार देती है और व्यवहार परिवर्तन में योगदान करती है। टीकाकरण बच्चों के लिए एक जीवन रक्षक हस्तक्षेप है और यह उनके समग्र स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य और विकास को कवर करने वाली मीडिया रिपोर्टस में टीकाकरण को कैसे बढ़ाया जाये इस दिशा में फोकस होना चाहिए। मीडिया द्वारा हाशिए पर रह रहे समाज से जुड़ी सकारात्मक स्टोरी दूसरों को अपने बच्चों का टीकाकरण करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।कुछ राज्यों में खसरे के बढ़ते मामलों को देखते हुए, MoHFW ने प्रभावित क्षेत्रों में 9 महीने से 5 साल के सभी बच्चों को खसरा और रूबेला युक्त टीके (MRCV) की एक अतिरिक्त खुराक देने की सलाह दी है। यह खुराक 9-12 महीने पर पहली खुराक और 16-24 महीने पर दूसरी खुराक के प्राथमिक टीकाकरण कार्यक्रम के अतिरिक्त होगी।इतना ही नहीं MoHFW ने 6 महीने और 9 महीने से कम उम्र के सभी बच्चों को MRCV की एक खुराक देने की भी सलाह दी है, जहां 9 महीने से कम उम्र के खसरे के मामले कुल खसरे के मामलों के 10 प्रतिशत से ऊपर हैं।


इन्होंने की कार्यशाला में शिरकत
यूनिसेफ के सौजन्य से आयोजित मीडिया कार्यशाला में पीआईबी (महाराष्ट्र और गोवा) की एडीजी स्मिता वत्स शर्मा, जीओ न्यूज के संपादक पंकज पचौरी, अमर उजाला (देहरादून) के पूर्व कार्यकारी संपादक संजय अभिज्ञान, और उर्दू मीडिया से जुड़े डॉ. एम.एच. ग़ज़ाली ने अपनी बात रखी। इसके साथ ही डॉ परेश कंथारिया और डॉ मीता, निगरानी चिकित्सा अधिकारी, डब्ल्यूएचओ, डॉ अरुण कुमार मारुति गायकवाड़, एएचओ, टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम, बृहत मुंबई नगर निगम, डॉ एस शुक्ला, निदेशक टीकाकरण, एनएचएम, मध्य प्रदेश सरकार सहित कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी कार्यशाला को संबोधित किया और इस विषय पर अपनी प्रीाावी उपस्थिती दर्ज कराया।