अखिलेश के ‘अब्बा जान’ योगी ने एक बार फिर कसा तंज

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘अब्बा जान’ बयान आजकल सुर्खियों में है। इस मुद्दे पर एकाएक सियासत गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) आमने-सामने आ गई हैं। दोनों तरफ से जुबानी जंग तेज होती नजर आ रही है। वार-पलटवार का सिलसिला दिलचस्प हो गया है। यूपी की सियासत में ‘अब्बा जान’ पर उभरा विवाद कहां जाकर रूकेगा, अभी बताना मुश्किल है। अब्बा जान उर्दू का शब्द है। मुस्लिम समाज में बच्चों द्वारा पिता को अब्बा जान कहा जाता है। पिता, अब्बा जान और डैडी बेशक 3 अलग-अलग शब्द हैं, मगर तीनों का अर्थ एक है।

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तंज कसने के लिए इस शब्द का प्रयोग किया था। लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने तंज कसकर कहा था कि उनके अब्बा जान (मुलायम सिंह यादव) कहते थे कि वहां (अयोध्या में) परिंदे को भी पर नहीं मारने देंगे, मगर अब वहां राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। सपा संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के प्रति अब्बा जान शब्द का इस्तेमाल किए जाने से उनके बेटे एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बुरी तरह तिलमिला उठे हैं।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश ने सीएम योगी की भाषा शैली पर आपत्ति जाहिर की है। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ को इस प्रकार की भाषण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यदि वह हमारे पिता पर इस प्रकार की टिप्पणी करते हैं तो उन्हें भी इस प्रकार का जबाव सुनने को तैयार रहना चाहिए। भाजपा और सपा के मध्य यह मामला तनातनी का कारण बन गया है। उत्तर प्रदेश में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों ने विधान सभा चुनाव की तैयारियां आरंभ कर दी हैं। इसके मद्देनजर सपा भी इलेक्शन मोड में आ गई है। पिछले कुछ समय से सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव निरंतर भाजपा को निशाना बना रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर जब-तब टिप्पणी करते रहते हैं। चुनावी मौसम नजदीक आने पर अखिलेश की पूर्व मंत्री मो. आजम खां में भी दिलचस्पी बढ़ गई है। वह उप्र सरकार पर आजम खां को फंसाने का आरोप लगा चुके हैं। उन्होंने यह तक कह दिया था कि जब वह यूपी के मुख्यमंत्री थे तो उनके पास भी योगी आदित्यनाथ की फाइल आई थी, मगर उन्होंने राजनीतिक दुर्भावना से कोई कदम नहीं उठाया।

सपा के कद्दावर नेता मो. आजम खां लंबे समय से जेल में बंद हैं। पिछले दिनों तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी अस्वस्थ चल रहे हैं। कल्याण सिंह की सेहत का हाल-चाल जानने हाल-फिलहाल में भाजपा के कई कद्दावर नेता पहुंचे थे, मगर आजम खां से मिलने तक अखिलेश यादव नहीं गए थे। सपा कार्यकर्ताओं को यह नागवार गुजरा था। सोशल मीडिया पर ट्रोल होने के बाद अखिलेश को गलती का अहसास हुआ था। बाद में वह आनन-फानन में आजम खां से मुलाकात करने पहुंचे थे।

सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा पूर्व सीएम अखिलेश यादव पर की गई टिप्पणी के निहितार्थ को जानने की जरूरत है। दरअसल जिस समय अयोध्या में बाबरी विंध्वस की घटना घटी थी, उस समय यूपी की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में थी। मुलायम ने कार सेवकों पर गोलियां तक चलवा दी थीं। कार सेवकों पर गोलियां चलवाने का अफसोस आज तक उन्हें नहीं है। कई मौकों पर मुलायम सिंह इस घटना का जिक्र कर चुके हैं। उसी संदर्भ में मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ ने इशारों-इशारों में यह कह दिया है कि कभी मुलायम ने जिस अयोध्या में कार सेवकों को रोकने के लिए सख्ती दिखाई थी, वहां आज भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। राम मंदिर के निर्माण में समाजवादी पार्टी का कोई योगदान नहीं रहा है बल्कि इस कार्य में पार्टी ने सिर्फ अड़ंगा लगाया है। मुस्लिमों के प्रति सपा का हमेशा सॉफ्ट रूख रहा है।

यूपी में जब-जब सपा की सरकार रही, मो. आजम खां का जलवा कायम रहा। मुलायम और आजम खां की काफी घनिष्टता रही है। कई बार वैचारिक मतभेद होने पर आजम खां जब नाराज हो जाते थे तो उन्हें मनाने के लिए पूरी सरकार घुटनों के बल आ जाती थी। जैसे-जैसे विधान सभा चुनाव निकट आते जाएंगे यूपी में सियासत और गरमाती नजर आएगी। उप्र के आगामी विधान सभा चुनाव में बसपा ने अकेले उतरने का ऐलान किया है। जबकि सपा को अब तक सिर्फ आम आदमी पार्टी (आप) का साथ मिल पाया है।

कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं है। मुस्लिम मतदाताओं पर सपा-बसपा दोनों की नजर है। इसके अलावा एआईएमआईएम प्रमुख एवं हैदराबाद सांसद असद्दुदीन ओवैसी भी यूपी की राजनीति में संभावनाएं तलाशने निकल पड़े हैं। वह भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और सपा को जमकर कोस रहे हैं। ओवैसी की बढ़ती सक्रियता ने खासकर सपा की बेचैनी बढ़ा रखी है। यूपी विस चुनाव में यदि ओवैसी किसी दल के साथ गठबंधन कर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारते हैं तो इससे सपा-बसपा को नुकसान उठाना पड़ेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भाजपा ने कम संघर्ष किया है। भाजपा, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना आदि ने राम मंदिर के लिए आंदोलन में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया था। कुछ साल के भीतर राम मंदिर का निर्माण पूर्ण हो जाएगा। यूपी के अगले विस चुनाव में भाजपा इस मुद्दे को भुनाने से कतई पीछे नहीं हटेगी। बहरहाल राजनीतिक दलों के बीच निकट भविष्य में अलग-अलग मुद्दों पर तीखी जुबानी जंग बढ़नी तय है। सीएम योगी आदित्यनाथ के अब्बा जान बयान के समर्थन में पार्टी के कई नेता सामने आ गए हैं। यह नेता अब सपा को करारा जबाव दे रहे हैं।