जहां दंडनायक से वरदायक बन जाते हैं शनिदेव

मथुरा। कोसीकलां गांव के पास प्राचीन कोकिलावन शनिदेव सिद्धधाम की काफी मान्यता है। मंदिर में दर्शन करने के लिए देश-विदेश तक से श्रद्धालु आते हैं। शनिदेव को न्यायाधीश माना जाता है। ऐसे में श्रद्धालु वहां अपने गुनाहों की क्षमा याचना भी करते हैं। गौरव पांडेय ने बताया कि कोकिलावन शनिदेव सिद्ध धाम लगभग 5500 साल पुराना है। मंदिर का प्राचीन इतिहास बेहद रोचक है। पुजारी के मुताबिक मंदिर परिसर में शनिदेव की स्वयंभू मूर्ति स्थापित है। इस स्थान को शनि कोकिलावन मंदिर के नाम से जाने-पहचाने जाने की पौराणिक कथा भी दिलचस्प है।

बताया जाता है कि भगवान कृष्ण ने यहां कोयल बनकर शनिदेव को दर्शन दिए थे। दंडनायक शनि यहां वरदायक बन जाते हैं। इस मंदिर में शनि देव सम दृष्टि वाले हैं। मथुरा के कोसीकलां गांव के पास शनिदेव का एक और सिद्ध धाम है। जहां दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। माना जाता है कि यहां परिक्रमा करने से तमाम मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि द्वापरयुग में शनिदेव अपने आराध्य भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने के लिए नंदगांव आए थे।

गौरव पांडेय ने कहा कि शनि को नंद बाबा ने रोक दिया, क्योंकि वे उनकी वक्र दृष्टि से भयभीत थे। तब दुखी शनि को सांत्वना देने के लिए कृष्ण ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्या करें, वे वहीं दर्शन देने के लिए प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्थान पर पर तप किया। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने कोयल बनकर यहां शनिदेव को दर्शन दिए थे और वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति कोकिलावन की श्रद्धा और भक्ति के साथ परिक्रमा करेगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।